भारत से पश्चिम-मध्य यूरोप तक रेलगाड़ी और जहाज से व्यापार के लिए जी-20 देशों ने अपनी सहमति प्रदान करके मोदी जी को विश्व के महानतम कुटनीतिज्ञ के रूप में स्वीकार कर लिया है। नरेन्द्र मोदी को विश्व के नेतृत्वकर्ता के रूप में स्वीकार कर लिया है। नरेन्द्र मोदी विश्व के नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी पहचान दिलाने में सपफल हुए हैं और भारत के सम्मान को बहुत आगे बढ़ाया है। चीन का राष्ट्रपति जिनपिंग के नहीं आने का कारण समझ में नहीं आया, बस कारण यही रहा होगा कि जी-20 के महत्व को कम या असपफल दिखाने की उसकी सोच, यह चाल उल्टा पड़ गया।
चीन कर्ज देकर जमीन है हड़पने वाला और गुलाम बनाने के मानसिकता रखनेवाला देश के रूप में अपने को दुनिया में कुख्यात किया है, वहीं भारत विश्वव्यापी महामारी कोरोना काल में गरीब और पड़ोसी देशों को मुफ्रत में कोविड टीका देकर उदारता का शानदार परिचय दिया। गरीब देश को यह समझाने में सपफल रहा कि भारत उसका शुभचिंतक है। आज पड़ोसी देश और भारत का कट्टर दुश्मन देश पाकिस्तान की जनता भी मोदी के कामों की सराहना कर रही हैं। अपने नेताओं को लानत-मलानत कर रहे हैं। येेेेेे सारी घटनाएँ सामान्य भारतियों को गौरवान्वित करने वाली है। एकमात्रा अपवाद राहुल गांध्ी है, जी-20 देश के राष्ट्राध्यक्ष प्रधनमंत्राी और विदेश मंत्राी भारत में जुटे थे, उसी समय राहुल गांध्ी यूरोप जाकर मोदी सरकार की निंदा कर रहे थ्ेा। आपदा, आलोचना, अपमान और उपहास को अवसर में बदलने का नाम नरेन्द्र मोदी है।
वैश्य के नेता ना तो महात्मा गांध्ी से कुछ सीखा, ना तो डाॅ. राम मनोहर लोहिया से सीखा और अब नरेंद्र मोदी से कुछ सीखने को तैयार नहीं है। कांग्रेस में तो एक राहुल गांध्ी है लेकिन वैश्य में राहुल गांध्ी की कमी नहीं है। कांग्रेसी राहुल गांध्ी के अंध्भक्त हैं।
वैश्य एकता तभी संभव है जब ये मुख्यमंत्राी के लिए दावेदार होंगे, ये स्वयं को घोषित कर, उसे कसौटी पर कसेंगे। विधयक तो, जिला परिषद सदस्य और मुखिया पैदा नहीं कर सकता है क्योंकि उसे भय रहता है कि ये जिला परिषद सदस्य, मुखिया उसके विरोध्ी, प्रतिद्वंदी बन सकते हैं। मुख्यमंत्राी के दावेदार को विधयक पैदा करने की मजबूरी होगी इसलिए ये सभी घटक को प्रतिनिध्त्वि देंगे, तब वैसे में एकजुट संभव है।
स्वार्थ और अहंकार से ग्रसित वैश्य नेता प्रतिभाओं को कुचलना में अपने सभी विवेक का उपयोग करते रहे हैं। लिखने-पढ़ने से कोई मतलब नहीं है। लोकसभा में दो-चार टिकट से अध्कि मिलेगा नहीं और विधनसभा में अभी जो संख्या है उसमें एक-दो कम या अध्कि होगा। वैैश्य नेताओं ने संगठन भी नहीं बनाया है, पन्नापति की बात तो बहुत दूर की है, जिला में भी सशक्त कमिटी नहीं है ना उनकी कोई सोच है, ना हीं उनकी योजना है, सोशल मीडिया पर संगठन है। बड़ी सभा करके किसी दल से टिकट का जुगाड़ करना है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए वह समाज को सीढ़़़़़़़ी बनाना है। समाज के उत्थान के लिए उनके पास ना कोई सोच है, ना सपना, ना रणनीति। वैश्य समाज एक सजग समाज है और उसका पफैसला देश-प्रदेश के व्यापक हित में होता है।
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