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गरीब दस तःलन की कलम से : "दो टूक" बुखार का सीजन

 सम्पादक जी महाराज,

    जय हो!

आगामी नवम्बर में बिहार विधनसभा का

चुनाव होने जा रहा है। मौसम बदलने के दौरान बुखार का सीजन होता है।

इसी तरह पंचवर्षीय चुनाव के दौरान चुनाव की बुखारी सीजन है। हर मौसम का अपना )तुपफल होता है, उसी तरह चुनावी सीजन का )तुपफल ‘रैली’ है। नई-नई राजनीतिक दल सबके सब बिहार बदलने की ही बात कर रहे हैं, जैसे बिहार कोई भवन है, चुना करा देंगे, धे-पोंछ कर चका-चक कर देंगे। भाई बदलेंगे कैसे? बदलने के लिए कोई योजना बनाए हैं? बनाए हैं तो बताइए? बेरोजगारों को रोजगार देंगे। सरकारी नौकरी देंगे? आप देंगे तो कैसे? किस विभाग में कितना सरकारी पद खाली है, क्या आपको पता है? बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालय में कितना प्रोपफेसर शिक्षेकत्तर कर्मचारी का पद रिक्त है, पता है क्या? बी. आर. बिहार विश्वविद्यालय के उपर से नीचे तक एक ही जाति के अध्किांश पदाध्किारी है, पता है, ये भूमिहार जाति से आते हैं, यही हाल कृषि विश्वविद्यालय सबौर का है, यहाँ कुर्मी जाति का आध्पित्य है। चूंकि सबके सब जातिवादी आधर पर चुनाव लड़ने की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मंशा पालते हैंऋ जाति नहीं हैऋ यह बंध्ुआ मजदूर है। जिसको मन होगा, जहाँ हाँक लेंगे। पक्ष-विपक्ष में बोलने वाला दो-चार लोग है, भाड़े की भीड़ के साथ तमाशा किया जाता है। जाति के अध्किांश लोग अपने-अपने काम में लगे हैं, जिसको पफुर्सत है, मोबाइल और स्र्माटपफोन पर लगे हैं। 

500 करोड़ लगाकर जाति गणना हुई, प्रदेश स्तर पर पता है, कौन जाति कितना है, लेकिन प्रखंड स्तर का सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित नहीं किया गया है, डेढ़ साल बीत चुका है। राष्ट्रीय जनगणना रिपोर्ट प्रखंड स्तर पर का प्रकाशित होता है, जिसमें अनुसूचित जाति व जनजाति का डाटा होता है। अनेक नेता ने जाति गणना को बहुत गलत बताया, लेकिन साबित नहीं कर सकें। यदि यह प्रखंडवार प्रकाशित होती तो पता कर संतुष्ट हो सकते थे, असंतुष्टि पर अदालत का दरवाजा खटखटाते। सरकार ने इसकी परवाह ही नहीं की। चूंकि सरकार बहादूर अंतरिक्ष से पैसा मंगवाये थे। जाति गणना आने से जो लोग सत्ता का मलाई चख रहे हैं, बिजली उन्हीं पर गिरी है, इसलिए यह चर्चा गौण है। जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी चुनावी जुमला से आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है।

चुनावी मौसम में बिहार की नई पार्टियां है, प्रशांत किशोर का जनसुराज, पूर्व आईएएस और पूर्व केन्द्रीय मंत्राी आरसीपी सिंह का आसा, पूर्व आईपीएस शिवदीप लांडे का हिन्द सेना, ई. आई. पी. गुप्ता का इंडियन इंकलाब पार्टी। ये सब इस चुनावी

मौसम का पफल है। राष्ट्रीय पार्टी, क्षेत्राीय पार्टी के साथ ही सैंकड़ों निबंध्ति पार्टियां।

आज के तारीख में सारा काम अंतरिक्ष आधरित हो रहा है। स्मार्टपफोन उपग्रह से संचालित होता है। सब दल अंतरिक्ष से बिहार को देख रहें हैं। जमीन से देखने वाला कोई नहीं है,     ध्नबल की जयकारा गूंज रही है। आज का चुनाव बारगेनिंग कला में दक्षता पाने वालों का है।

जनता मूक दर्शक होकर तमाशा देख रही है। ये बिहार बदलने की तैयारी करती है, या बिहार बदलने का सपना दिखाने वालों को ही औकाद दिखाती है, पफैसला नवम्बर में होना है। कुछ नये विधनसभा में अपना खाता खोल लें, लेकिन असली मुकाबला पूर्व के दोनों गठबंध्नों में ही होना है। 

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