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जातिवाद के नाम पर बाहुबलि का साथ और बुद्धिमान की उपेक्षा

भारतीय समाज में जातिवाद एक गहरी जड़ें जमाए हुई समस्या है, जिसने सामाजिक संरचना को कमजोर किया है। जातिगत आधर पर शक्ति और सत्ता का निर्धरण कई बार तर्क, योग्यता और नैतिकता से अध्कि प्रभावशाली बन जाता है। इसी कारण, समाज में अक्सर बाहुबलियों को समर्थन मिलता है, जबकि बु(िमान और योग्य व्यक्ति उपेक्षित रह जाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल सामाजिक न्याय के सि(ांतों के विरु( है, बल्कि देश के विकास और प्रगति में भी बाध उत्पन्न करती है।
जातिवादी मानसिकता के कारण कई बार लोग किसी बाहुबलि को केवल इसलिए समर्थन देते हैं क्योंकि वह उनके समुदाय से आता है, भले ही वह अपराध्ी प्रवृत्ति का हो या समाज के लिए घातक सि( हो। ऐसे बाहुबलियों का समर्थन करने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. डर और प्रभाव:- बाहुबलियों की शक्ति और दबदबे के कारण लोग उनके विरोध् में जाने से कतराते हैं।
2. जातीय पहचान:- समाज में यह भावना प्रबल होती है कि ‘अपना आदमी’ सत्ता में रहेगा तो हमारी सुरक्षा होगी।
3. अल्पकालिक लाभ:- बाहुबलि तत्काल लाभ और व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति करता है, जिससे लोग उसे समर्थन देते हैं।
4. राजनीतिक संरक्षण:- कई बाहुबलियों को राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त होता है, जिससे वे मजबूत होते जाते हैं।
जहां बाहुबलि को समर्थन मिलता है, वहीं दूसरी ओर, बु(िमान व्यक्ति, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है, उसे अक्सर उपेक्षित कर दिया जाता है। इसके मुख्य कारण हैं-
1. ध्न-बल और बाहुबल की कमी:- बु(िमान व्यक्ति के पास बाहुबल और आर्थिक संसाध्न कम होते हैं, जिससे वह राजनीति और प्रशासन में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाता।
2. जातिगत पूर्वाग्रह:- यदि कोई व्यक्ति किसी ‘कम प्रभावशाली’ जाति से आता है, तो उसकी योग्यता को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
3. विज्ञान और तर्क की उपेक्षा:- समाज में कई बार तर्क और ज्ञान को दरकिनार कर भावनाओं और जातीय जुड़ाव को प्राथमिकता दी जाती है।
4. मौकापरस्ती की राजनीति:- राजनीतिक दल भी ऐसे बु(िजीवियों को नजरअंदाज करते हैं, क्योंकि वे बाहुबलियों की तुलना में कम जनाधर ला सकते हैं।
उदाहरण
1. दस्यु सुंदरी पफूलन देवी बनाम डाॅक्टरों और शिक्षकों की स्थिति:- फूलन देवी, जो एक डकैत थीं, जातीय समर्थन और बाहुबल के आधर पर सांसद बन गई, जबकि उसी समाज के योग्य शिक्षक और डाॅक्टर समाज में सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे थे।
2. उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति:- कई बाहुबलियों को जातिगत आधर पर सांसद और विधयक बनाया गया, जबकि शिक्षाविदों और बु(िजीवियों को राजनीति में प्रवेश नहीं मिल सका।
3. चंद्रगुप्त मौर्य बनाम नंद वंश:- इतिहास में भी देखा गया है कि चाणक्य जैसे बु(िमान व्यक्ति को दरकिनार कर दिया गया, लेकिन जब उन्होंने एक योग्य व्यक्ति ;चंद्रगुप्तद्ध को सत्ता में लाया, तब राष्ट्र को महानता मिली।
नकारात्मक प्रभाव
1. सामाजिक पतन:- बाहुबलियों को बढ़ावा देने से समाज में अपराध् और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
2. प्रतिभा पलायन:- योग्य और बु(िमान व्यक्ति अन्य देशों या क्षेत्रों में चले जाते हैं, जिससे समाज पिछड़ जाता है।
3. राजनीतिक अस्थिरता:- बाहुबलियों के वर्चस्व से लोकतांत्रिक मूल्यों का हृास होता है।
4. आर्थिक अवनति:- जब योग्य लोग हाशिए पर चले जाते हैं, तो समाज और देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है।
समाधन
1. शिक्षा और जागरूकता:- समाज को यह समझना होगा कि बाहुबल और जातीय पहचान से अध्कि महत्वपूर्ण योग्यता और नैतिकता है।
2. लोकतांत्रिक सशक्तिकरण:- जनता को अपने मताध्किार का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए और केवल योग्य व्यक्तियों का समर्थन करना चाहिए।
3. मीडिया और समाज की भूमिका:- मीडिया को बाहुबलियों की बजाय बु(िजीवियों को बढ़ावा देना चाहिए और सकारात्मक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
4. कानूनी सुधर:- बाहुबलियों को राजनीति से दूर रखने के लिए कठोर कानून बनाए जाने चाहिए।
जातिवाद के नाम पर बाहुबलियों का समर्थन और बु(िजीवियों की उपेक्षा समाज के पतन का एक प्रमुख कारण है। जब तक समाज योग्यता और ईमानदारी को प्राथमिकता नहीं देगा, तब तक भ्रष्टाचार और अराजकता बनी रहेगी। अतः, समय आ गया है कि हम इस प्रवृत्ति को त्यागें और समाज में सच्चे नेतृत्व को स्थान दें ताकि देश और समाज की प्रगति सुनिश्चित हो सके।

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