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संगत से गुण आत है, संगत से गुण जात

सम्पादक जी महाराज,
    जय हो!
बिहार में इध्र गजबे का राजनीति खेल चल रहा है। सुंदरी से गलबाहियां करने के लिए लोग ध्र्म, ईमान, इज्जत, परिवार और ध्न सभी को दांव पर लगाते देखे गये हैं और सत्ता-सुंदरी से गलबाहियां के लिए लोग उक्त के साथ-साथ और जो बचा होता है, वह भी दांव पर लगा देते हैं।




‘संगत से गुण आत हैं, संगत से गुण जात’ कहावत सापफ-सापफ चरितार्थ हो चुकी है। 2024 के चुनाव के मद्देनजर अपने द्वारा बनाये गये कानून की जड़ खोद दी, पिफर उसे वापस लेकट वोट पाने का जुगाड़ कर लिया, लेकिन उन्होंने जो जागरण का पाठ पढ़ाया था, वो अब दिलों-दिमाग में बस गया है। बिहारी चाणक्य का यह खेल समझ से पड़े है और समझ में आ जाए तो चाणक्य नीति क्या है?

घुटने टेकने की यह अदा बहुत को संदेह पैदा कर दिया है। इशारों और इशारों में बड़ा संदेश है। प्रदेश की जनता सभी इशारों को समझती है। देश की जनता जिस ढं़ग से अपना पफैसला देती आयी है कि भारतीय लोकतंत्रा दुनिया में अपनी सोच-समझ के लिए सम्मानीय दृष्टि से देखी जाती है। यहाँ की जनता को पटीð पढ़ाने वाले स्वंय ही पटीð पढ़ने के लिए तैयारी कर रहे हैं।

सत्ता सुंदरी की गलबाहियां करने के लिए दूरदर्शिता तो दूर की बात है, सामने देख नहीं सकते, आंख पर पटीð बांध् ली है। कौन विरोध्ी है, समझ से पड़े है। जो सामने में है या जो साथ है। पफैसला जनता के हवाले कर, इशारा भी कर दिया गया है।

भाई राजनीति है अर्थात् राज की नीति, रहस्य की नीति। इस नीति को समझाने में ये गरीब दास टहलन का दिमाग बौरा गया है, कुछ बूझ नहीं पा रहा। जनता समझकर माकूल जवाब देकर अपनी ऐतिहासिक परंपरा को बनाए रखेगी, ऐसा ही विश्वास है, जो होता आया है।

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