वैश्य समाज के छुटभैया जातीय नेता ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए, न केवल वैश्य समाज को गुमराह किया है, बल्कि बड़े-बड़े नेताओं को भी इस चपेट में ले लिया है। वैश्य समाज के लोग देश, काल और परिस्थिति का सही आकलन कर हर समय अपने यथावत स्थिति को कायम रखा है। गांध्ीजी देश, काल और परिस्थिति के सही नब्ज को पहचाना था, उसके अनुसार काम कर राष्ट्रपिता बन गये। महात्मा गांध्ी उस समय नेताओं के नेता थे, जब एक-से-एक दिग्गज लोग नेतागिरी कर रहे थे, जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, डाॅ. भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल। आज के नेता तो अपराध्यिों, ध्नपशुओं और बाहूबलियों का नेतृत्व कर रहे हैं। इन लोगों ने सदाचारियों को दरकिनार कर अनाचारियों के दम पर चुनाव जीतते हैं, पफलतः छूटभैया नेता का मनोबल बढ़ गया है।
वैश्य समाज बदलते राजनीतिक और समाजिक वातावरण के अनुसार अपने आप को सत्ता में शामिल करने के लिए बड़ी सूक्ष्मतापूर्वक प्रयासरत है। सिविल सेवा में पिछले कुछ वर्षों से 10-12» सीटों पर पहुंच रहा है। अन्यान्य सेवा में इसकी यही स्थिति है। बिहार के पंचायती राज चुनाव और नगर निकाय चुनाव में भी यह 10-12» क्षेत्रों से निर्वाचित हुए हैं। विधनसभा में लगभग यही स्थिति है। संसदीय चुनाव में पिछड़ा है और पिछड़ने का कारण व्यक्तिगत योग्यता का अभाव है, अर्थात् ये अपराध्ी नहीं है, बाहूबलि नहीं है, जो आज के चुनावी यु( में योग्यता है। शायद ये योग्यता इनमें नहीं आयेगी, क्योंकि इस चीज को वैश्य समाज नकारता है।
भाजपा के प्रति वैश्यों का झुकाव है, या ये इसके वोट बैंक हैं। भामाशाह जयंती के मौके पर जद यू व्यावसायिक व उद्योग प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित समारोह में मुख्यमंत्राी ने स्पष्ट कहा है वैश्य समाज उनके प्रति संवेदनशील नहीं है। वोट के मामले में वैश्य समाज पर भरोसा करने पर प्रश्नवाचक चिन्ह है। वैश्य समाज में 56 जातियाँ है। 10 जाति किसी सूची में नहीं है। 19 अति पिछड़ी जाति में शामिल है। इसमें उनके शासनकाल में तेली, हलवाई, जैसी कई जाति को शामिल किया गया है। 22 जाति पिछड़ी श्रेणी में शामिल है। अनुसूचित जाति में एक तांती और अल्पसंख्यक में एक जैन शामिल है।
तांती जाति की व्यक्तिगत रणनीति है। उसी तरह कानू-हलवाई, तेली, सोनार, रौनियार जैसी अनेक जातियों की अलग-अलग रणनीति है। इनके छुटभैया नेता केवल जाति के
आधर पर अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए लगेे हैं, जो वैश्य समाज की एकता में बाध्क है। इसी तरह वैश्य नामित संगठन भी दलीय आधर पर बंटे हैं, इनके नेताओं का भी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है।
वैश्य समाज और इसके अन्तर्गत आने वाली जातियां अपने सभी नेताओं के कार्यकलाप पर पैनी दृष्टि रखे है। मिलने पर दिल खोलकर सम्मान करते हैं, लेकिन करते वहीं जो उनके दिल दिमाग में बैठा है। देश काल और परिस्थिति के अनुसार राष्ट्र हित में ही यह समाज कदम उठाएगी।
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