प्रकृति या ईश्वर ने मानव तन देकर बड़ा उपकार किया है, लेकिन इस जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियों का सामना होता है कि हम निराशा के दलदल मंे पफंस जाते हैं। इस भयंकर दुःखदायी निराशा को व्यक्त किया है, 1957 की फिल्म अब दिल्ली दूर नहीं में महान गीतकार शैलेन्द्र द्वारा रचित गाना जिसे संगीतबद्ध किया है दत्ताराम और गायी है सुधा मल्होत्रा। इस गाना का बोल है - ‘‘मालिक तेरे जहां में कोई नहीं हमारा।’’ इसी तरह 1960 के पिफल्म पतंगा में महान गीतकार राजेन्द्र कृष्ण द्वारा रचित, संगीतकार चित्रागुप्त द्वारा संगीतबद्ध था लता मंगेशकर द्वारा गाया गीत- ‘‘देने वाले किसी को गरीबी न दे।’’
ये दोनों गीत इंसान के दारूण दुःख दर्द को व्यक्त करता है। आदमी को कभी-कभी इस दौर से गुजरना पड़ता है, वैसी परिस्थिति में चारों ओर निराशा का घना अंध्कार घेरे अनुभव होता है और अपना जीवन बोझ लगता है, ऐसी स्थिति में लोग आत्महंता जैसे राह पर कदम उठाने को सोचने लगते हैं, ऐसी परिस्थितियों से सामना करने और उबरने के लिए भारतीय फिल्म जगत के महान निर्माताओं, निर्दशकों, कहानीकारों, गीतकारों ने अपना बहुत महत्वूपर्ण योगदान दिया है। उसके कुछ गीत का बोल दिया जा रहा है। ये गीत आपके संघर्षमय जीवन में आशा के दीप प्रज्वलित कर जीने के राह को आसान बनाने में बहुत कारगर होंगे, आपके अंदर दुनिया में परिस्थितियों से जुझने, लड़ने का साहस, शक्ति प्रदान करेंगे और आपके हौंसला को बुलंद कर नई राह ढूंढ़ने में काफी सहायक होंगे।
वर्तमान वातावरण में बहुत सारे लोग विभिन्न कारणों से निराशा में ही रहे हैं। सामाजिक स्थिति बद से बदतर है। फलतः लोग अपने दिल के जख्म को दिखाना, बताना उचित नहीं समझते हैं, लेकिन उनके चेहरे, हाव-भाव सब कुछ बेता देता है। संवेदनशील व्यक्ति को उनके नैराश्य का अनुभव हो जाता है, निराशाग्रस्त लोगों को वैचारिक सहयोग कर निराशा से उबारने का प्रयास करना व्यक्तिगत जीवन को सार्थक करने का अवसर है, किसी के प्रति करूणा-दया का भाव रखना मानवीयता है। ऐसे अवसरों पर किसी का कुछ काम आना अपने लिए सौभाग्य का सूचक है। नैराश्य में डूबे व्यक्ति को इन गीतों को सुनाकर बताकर आप भगवान के चरनों मे श्रद्धा के फूल समर्पित कर सकते हैं।
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