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आलेख - उच्च शिक्षा और भारत : उच्च शिक्षा में भारत कहाँ पर है?

वर्ष 2023 में उच्च शिक्षा पाने के लिए लगभग साढ़े सात लाख भारतीय छात्रा-छात्राएँ विदेश रवाना हो गये हैं।

भारत का सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थान आई. आई.एससी बंगलौर है लेकिन क्यूएस रैंकिंग में इसका स्थान विश्व में 155 है। अर्थात् दुनिया में क्यूएस रैंकिग में भारत 150 स्थानों में नहीं है। क्यूएस रैंकिंग में पिछली बार दिल्ली विश्वविद्यालय 501-510 में था, जो पिफसलकर 521-530 में आ गया। इसी तरह जे.एन.यू. 561-570 से पिफसलकर 601-650 पर पहुंच गया। जामिया इस्लामिया भी इसी का हमसफर बना 751-800 से फिसलकर 1201-1400 पर पहुंच गया।

जर्मनी, फ़्रांस और इटली में उच्च शिक्षा की मुफ्त व्यवस्था है। पढ़ाई-फीस के नाम पर खर्च नगण्य है। नार्वे पिफनलैंड, चेक रिपब्लिक और स्पेन में भी शिक्षा निःशुल्क है लेकिन वहां की पढ़ाई स्थानीय भाषा में होती है। यहां पढ़ने के लिए स्थानीय भाषा सीखना जरूरी है। जर्मन के म्यूनिख के तकनीक विश्वविद्यालय का क्यूएस रैंकिंग 49, लुडविग मैक्सिमिलियंस यूनिवर्सिटी म्यूनिख-59, हीडलवर्ग विश्वविद्यालय का 65, प्रफेई यूनिवर्सिटी का 118, हम्बोल्ट विश्वविद्यालय बर्लिन का 131, कार्ल नूए प्रौद्योगिकी संस्थान ;किजद्ध का 141। इसी तरह फ़्रांस के यूनिवर्सिटी पी एस एल 40, सोर बौन विश्वविद्यालय 72, विश्वविद्यालय ग्रेनोबल अल्पस का 314 वां स्थान है। यहां अध्ययन करने के बाद नौकरी की गारंटी है। 40-50 लाख रू से पैकेज की शुरूआत होती है, करोड़-डेढ़ करोड़ तक पहुंच जाती है। ये शुरूआती पैकेज है, जो छात्रा-छात्राओं को मिलती है।




विदेश में पढ़ने के लिए साधन-सम्पन्न वर्ग के बच्चे जाते हैं। पढ़ाई मुफ्त है लेकिन वहां रहकर पढ़ना खर्चीला है। बहुत बच्चे पार्ट टाइम जाॅब से अपना खर्च निकाल लेते हैं, वहां ऐसा अवसर मिलता है।

भारत के निजी और नामचीन संस्थान द्वारा बताया जाता है कि यदि उनके बच्चे पढ़ने में तेज होंगे तो आपको विदेश में रहने का खर्च और खाना आदि का खर्च देना होगा और पढ़ाई की पफीस संस्थान देगी। सच्चाई यह है कि उपरोक्त देशों में पढ़ाई निःशुल्क होती है। विदेश में पढ़ाई के भेजने के नाम पर ये नामचीन संस्थान उफंची पफीस वसूल करती है और छात्रा अभिभावक को गुमराह करते हैं।
जिस देश की आधी से अधिक आबादी 80 करोड़ को महीना का 10 दिन का खाना सरकार उपलब्ध कराती है, वहां उच्च शिक्षा इतना महंगा है कि गरीब व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बारे में सोच नहीं सकती है। सरकार को शिक्षा को पूर्णतः निःशुल्क करना चाहिए। प्रतिभा पलायन को रोकने की दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।

हमारे यहां शिक्षा व्यवस्था भगवान राम के भरोसे हैं। यहां के शिक्षक केवल और केवल अपने सुख-सुविधा  और अधिकाधिक वेतन पाने के लिए हड़ताल करते रहते हैं। अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाते हैं। गरीब के बच्चे की पढ़ाई भगवान भरोसे चलता है।

हमारे यहां के नामचीन विश्वविद्यालय दिल्ली विश्व -विद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी हिन्दू-मुसलमान के नाम पर पिछड़े-अगड़े के नाम पर लड़ती है। अनुसूचित और आदिवासी छात्रा-छात्राओं के साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता है, ये विश्वविद्यालय अपने काले कारनामें से समाचार पत्रों और टीवी चैनल में सुर्खियों पर रहते हैं।

यहां के शिक्षा मंत्राी को रैंकिंग की चिंता नहीं है। यहां के कुलाध्पिति और कुलपति को क्यूएस रेटिंग से कोई मतलब नहीं  है, तो प्रोपफेसर क्यों सोचे? कुलपतियों की नियुक्ति योग्यता पर नहीं, पहुंच और धन पर होती है। कुलपति भ्रष्टाचार में पफरार होते हैं और अंततः जेल जाते हैं। शिक्षा पर मात्रा 2.5% बजट का हिस्सा आता है। विश्व के रक्षा खर्च में भारत तीसरे स्थान पर पहुंचा, विश्व की आर्थिक शक्ति में भारत पांचवा स्थान पर पहुंचा इसका यशोगान बहुत होता है लेकिन क्यू एस रैंकिग में भारत कहां है? इसकी चर्चा शायद होती हो।

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