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सम्पादकीय : वैश्य नेताओं की सच्चाई

बिहार में वैश्य नेता, केवल सत्ता का हस्तांतरण चाहते हैं। आज बिहार में विधायक जिस तरह साधन-सम्पन्न, विशेषाधिकार प्राप्त है, रूतबा है, केवल यही प्राप्त करना, वैश्य के नेता चाहते हैं। व्यवस्था परिवर्तन से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वर्तमान व्यवस्था यथावत कायम रहे और उनको पेंशन आदि मिलता रहे, जवानी से बुढ़ापा तक मौज-मस्ती में जिएं, यही उनकी सपना है, कल्पना है, सोच है। अपनी सोच को पूरा करने के लिए वैश्य की पिछड़ी जाति के नेता अपनी जाति को अतिपिछड़े में शामिल करने हेतु संघर्ष का मुजुबानी चर्चा करते हैं। इसके लिए वैधानिक पहल नहीं करते हैं। ऐसे नेताओं को अपनी जाति की संख्या का सही-सही पता तक नहीं है। जाति के आर्थिक और शैक्षणिक दशा से इनका मतलब भी नहीं है। और तो और ये स्वंय ही नहीं चाहते हैं कि जाति आर्थिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत हो, इसका प्रमाण यह है कि अपने जाति को उन सरकारी योजना की जानकारी नहीं देते हैं, जिससे उनमें आर्थिक और शैक्षणिक समृद्धि आए। ये नेता आर्थिक और शैक्षणिक और बौद्धिक लोगों को अपना प्रतिद्वंदी या शत्रु मानते हैं। वैश्य की जो जाति अति पिछड़े वर्ग में शामिल है, अति पिछड़े वर्ग के नेता अपने जाति को अनुसूचित जाति में शामिल की मांग करते हैं। इनका भी स्वभाव, विचार उक्त वर्णित पिछड़े जाति के नेता के ऐसा ही है।



पिछड़ी जाति में शामिल होने से क्या लाभ लिया जा सकता है, उसकी चर्चा भूल से नहीं करते हैं। बस इतना ही इनके चर्चों का लब्बो-लूबाब होता है कि आप पहले इनको विधायक बना दीजिए उसके बाद ये आपकी तस्वीर और तकदीर बदल देंगे, लेकिन कैसे? इस पर कभी चर्चा नहीं करेंगे, प्रकाश नहीं डालेंगे।


वैश्य जाति का विश्वास जीतने के लिए इनको भाषण देना तक नहीं आता है। 20-25 मिनट किसी विषय पर तर्कपूर्ण तथ्य के साथ अपनी बात नहीं रख सकते हैं। जाति को आगे कैसे बढ़ाया जाए, उस मुद्दे पर इन्होंने कभी सपना नहीं देखा है। पफेसबुक, वाट्सएप पर बड़े-बड़े नेताओं के साथ अपना फोटो पोस्ट करते ये देखे जा सकते हैं। इनके बड़े हवेली, बड़ा व्यवसाय देखकर, इनको आप नेता मान लीजिए और एकजुट होकर इनको वोट देकर विधायक बना दीजिए। ऐसी बात नहीं है कि समाज में इसके अपवाद नहीं है। सही लोग हैं, वो पूरी निष्ठा और ईमानदारी से वैश्य समाज की सेवा यथोचित तरीकों से वर्षों-वर्ष से करते आ रहे हैं, 100 बेईमान में एक ईमानदार खो जाता है, परीक्षा देते-देते, समझते-समझाते उम्र गुजर जाती है। इनका हाल देखकर अगली पीढ़ी, आस-पास, रिश्तेदार, सामाजिक काम से कट जाते हैं। 


वैश्य नेता के लिए प्रशांत किशोर एक उदाहरण है। प्रशांत किशोर जाति से ब्राह्मण है, लेकिन वह महात्मा गांधी के पद चिन्हों पर आगे बढ़ रहा है। सफलता का स्वाद भी मिलना शुरू हो गया है। हम वैश्य शान से कहते हैं कि महात्मा गांधी वैश्य हैं और हम उनके वंशज  हैं, लेकिन महात्मा गांधी से कुछ भी नहीं सीखा। हम वैसे नेताओं के पद चिन्हों पर चलना है, जो भाग्य की कृपा से विधायक बन गये हैं।


  काश ! वैश्य नेता महात्मा गाँधी के पद चिन्हों पर चलते तो असफल नहीं होते और समाज को नेता मिलने का मार्ग प्रशस्त होता। 


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