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सम्पादकीय : हिन्दु एकता में वैश्य समाज की भूमिका

  पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का कथन है- ‘‘हम सुध्रेंगे, युग बदलेगा।’’ हिन्दू एकता में वैश्य समाज ने इस कथन को अपनाया है। हिन्दू समाज में वर्णवाद, जातिवाद के साथ ही दहेज प्रथा बहुत बड़ा कोढ़ है। दहेज प्रथा के कारण भ्रष्टाचार को उर्जा मिलती है। भ्रष्टाचार बढ़ाने में दहेज प्रथा की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

बिहार वैश्य समाज में 54 जातियां आती है। जिसका दैनिक जीवन शैली, खान-पान, पूजा-उपासना, आचार-व्यावहार आदि लगभग समान है और मुख्यतः इनका पेशा व्यवसाय है। ये जातियां विभिन्न प्रकार के व्यवसाय से जुड़ी है और मिल-जुलकर समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। हिन्दू समाज के चार वर्णो में यह एक वर्ण है। यह वर्ण विभिन्न जातियों और उपजातियों में बंटा है। पूरे हिन्दू समाज को एकजुट करने के पहले एक वर्ण को एकजुट करना अध्कि सुविधजनक है। वैश्य समाज की एकजुटता का स्पष्ट आशय है, एक वर्ण की एकजुटता। लेकिन वैश्य वर्ण में ही कुछ जातियां ऐसी है, जो राजनैतिक रूप से सजग है और सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैऋ लेकिन यह वैश्य के अन्यान्य जाति की उपेक्षा और उसका शोषण भी करती है। इन सजग राजनीतिक जातियों को छोड़कर राजनीतिक रूप में पिछड़े, अध्किार से वंचित और शोषण व उत्पीड़न की शिकार बिहार में वैश्य की 54 जातियां है। ये 54 जातियां आपस में एकजुट हो, उनके बीच जातिय दीवार ढ़ह जाए और एकता स्थापित हो ताकि उसे उसका समुचित राजनीतिक अध्किार मिल सके। उनके बीच बेटी-रोटी का संबंध् स्थापित हो और दहेज प्रथा जैसी कुरीति का अंत हो। मूलतः यह एक असाध्य कार्य है क्योंकि इस वैश्य समाज में भी आर्थिक रूप से अनेकानेक वर्ग है। सबसे उपर सम्पन्न वर्ग है और सबसे नीचे विपन्न वर्ग है। यह वैश्य के सभी जातियों में है। यह वर्गीय व्यवस्था के कारण कुछ लोग को सुपरनेशी अर्थात् श्रेष्ठ होने का दंभ है तो कुछ लोग हीन भावना से ग्रसित है। यह मानव की सहज कमजोरी होती है। वैश्य समाज की एकता में श्रेष्ठता और हीनता दोनों घातक है। पहली आवश्यकता है, समता लाने की। बिना समता की भावना का बेटी-रोटी संबंध् स्थापित होना संभव नहीं है। बिना बेटी-रोटी संबंध् के ना वैश्य समाज एकजुट होगा और ना ही हिन्दू समाज।

वर्णीय व्यवस्था में शादी-विवाह समान वर्ण में होता था, जो कालांतर में जातियता में बदली। आज, जो हर दृष्टिकोण से साध्न सम्पन्न है, जीविका के आधर पर वैवाहिक संबंध् हो रहा है अर्थात् पुरूष डाॅक्टर का विवाह, महिला डाॅक्टर से, पुरूष साॅफ्रटवेयर इंजीनियर का विवाह महिला साॅफ्रटवेयर इंजीनियर से, पुरूष शिक्षक का विवाह, महिला शिक्षक यानि शिक्षिका से हो रहा है। समान पेशा ने जाति बंध्न को तोड़ा है। हिन्दू एक करने की दिशा में एक कदम है। हिन्दू एकता लाना है, तो वैश्य एकता उसकी प्रारंभिक सीढ़ी है। वैश्य एकता, हिन्दू एकता के विरूद्ध नहीं है। वैश्य समाज अपने अन्तर्गत जातियों में जंजीर काटने के लिए ही एकता की बात करता है। 

राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए हिन्दू एकता परम आवश्यक है और हिन्दू एकता के लिए वैश्य एकता बहुत आवश्यक है। इसी तरह अनुसूचित जाति में शामिल अन्यान्य जातियों के बीच में भी एकता रखने की आवश्यकता है। यह दोनों समूह हिन्दू जाति का लगभग हिन्दू आबादी में 50% अध्कि है।

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