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टहलन की कलम से : मोहरे की तलाश

सम्पादक जी महाराज,
    जय हो!
     समाज में होशियार लोगों की कमी नहीं है। होशियार लोगों की विशेषता यह मानी जाती है, यदि कोई असफलता उनके हाथ लगे या उनके कारण हो जाए, तो वो किसी अन्य पर दोष डालकरऋ अपने होशियार या चालक या बुद्धिमान होने की पदवी बचा सके। इस काम के लिए उन्हें मोहरा की तलाश रहती है। होशियार आदमी दशों दिशाओं का ध्यान रखकर योजना बनाते हैं, सारी सावधनियां रखने कीऋ उनकी कोशिश रहती है. इतना होने पर भी, उनके मन में कहीं न कहींऋ असपफलता की आशंका भी जुड़ी रहती है. यह असपफलता का दोष किस पर मढ़कर, अपने आपको पाक साबित किया जाए, इसके लिए मोहरा की तलाश होती है।
आगामी विधनसभा चुनाव संग्राम में राष्ट्रीय दल, प्रादेशिक दल, पंजीकृत दल और नवोदित दल सभी के सभी दो-दो हाथ करेंगें। जीत तो एक की होनी है. हार का हार ;मालाद्ध बाकी को पहनना है। जीत का माला पहनने में सभी आगे रहते हैं, लेकिन हार का हार कौन पहने? इसमें पहले मोहरा बनने के निशाने पर है ईवीएम मशीन, चुनाव आयोग, जातिय समीकरण, अनेक नेता ऐसे हैं, नेता तो हैं, उनके नाम पर चुनाव लड़ा भी जाएगाऋ लेकिन वे पार्टी के अध्यक्ष या प्रमुख पदाध्किारी नहीं, वे जब चुनाव हारेंगे तो सारा ठिकरा पर्टी के अध्यक्ष पर पफुटेगा।
बिहार में 243 विधनसभा सीट है और व्यक्तिगत योग्यता के आधर पर जीत कर आने वाले में एक भी नेता नहीं दिखते हैं, उनके नाम की चर्चा तक नहीं है। पार्टी का टिकट मिले या ना मिले, वे निर्दलीय खड़ा होंगे तो जीतेंगे। निर्दलीय जीतने वाले भाग्यशाली व्यक्ति होते हैं। इसे तो भाग्य लिखनेवाला ही जाने। सामान्य लोग इसकी पहचान करने में असमर्थ हैं।
बिहार में एक ओर एनडीए होगा और प्रमुख चेहरा प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्राी नीतीश कुमार हैं, दूसरी ओर महागठबंध्न होगा जिसका चेहरा राजद नेता तेजस्वी यादव हैं। नवोदित पार्टी जन सुराज का चेहरा प्रशांत किशोर हैं। आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ने की बात कह रही है, मुख्य नाम तो अरविन्द केजरीवाल का होगा, बिहार में उसका कोई चेहरा नहीं है। 
परिवर्तन का कोई कारण समझ नहीं आता है। असंतोष का कारक नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को बनाने का भपूर प्रयास, विरोध्यिों की ओर से जारी है। सामाजिक व जातीय समीकरण से ग्रसित लोगों के आंख पर पटिटयां बंध्ी है। वे खुंटा बही गाड़ते हैं, जहां उनका मन होता है। लेकिन सारा खेल 10» वैसे मतदाताओं का होता है, जो ना जातिय समीकरण, ना सामाजिक समीकरण को माने हैं, उसके सामने बिहार का होता है, विकास होता है, वैसे मतदाता जिस ओर झुक जाते हैं, उसकी सरकार बन जाती है। देखिए आगे होता है क्या? लेकिन अनेक की हार सुनिश्चित है, इसलिए मोहरा की तलाश जारी है।

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