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आलेख : वैश्य संगठन झोली ढ़ोलवा?

बिहार में जितने भी वैश्य नामित संगठन है प्रायः झोली ढ़ोलवा संगठन है, जो विभिन्न राजनीतिक दलों की झोली ढ़ोती है और इसके नेता का वैश्य जाति के उत्थान से कोई लेना-देना नहीं है। इसका अपने उत्थान मात्रा से मतलब है, इन्हें किसी तरह से एम.एल.ए या एम.एल.सी का टिकट मिल जाए, वैश्य के नाम पर ये पांच-छः वर्ष मजा ले, पिफर जीवन भर पेंशन उठाते रहें। वैश्य नामित संगठन के कुछ ऐसे प्रदेश अध्यक्ष हैं जो राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, कांग्रेस और भाजपा सभी दल में शामिल हुए लेकिन टिकट कहीं से आजतक नहीं मिला। अखिल भारतीय स्तर की इकाई बना बिहार प्रदेश संगठन का पटना में कार्यालय का फ्रलैट खर्च बाकी रहने से वर्षों से बंद पड़ा है। एक कार्यालय चलाने की क्षमता नहीं है, लेकिन उसके चमचे उन्हें मुख्यमंत्राी का दावेदार बनाकर उनका सीना चैड़ा कर देते हैं। बिहार के वैश्य नेताओं के पास बिहार के विकास के लिए कोई सपना नहीं है, ना ही कोई योजना है, बौद्धिक रूपसे दीन-हीन है और केवल झोला ढ़ोने के लिए बेताब है।
बिहार नामित वैश्य संगठन के नेता की सोच केवल और केवल विधनसभा और विधनपरिषद तक जाने तक सीमित है, वे लोकसभा की जाने की सोच तक नहीं रखते, ना ही कल्पना करते हैं। 
ये तथाकथित नेता लकीर के पफकीर हैं या पिछला रोटी खाने वाले हैं, ये अन्य राजनीतिक संगठन के आधर पर अपना संगठन खड़ा करते हैं। प्रदेश के नेता को शायद पता हो कि आबादी से सबसे बड़ा-छोटा जिला, अनुमंडल और प्रखंड कौन-सा है। वैश्य संगठन को सही ढ़ंग से राजनैतिक क्षेत्रा में दो-दो हाथ करना है तो सबसे पहले संगठन के स्वरूप पर गौर करें।
किसी जिला की आबादी 50 लाख तो किसी की 6-7 लाख। किसी अनुमंडल की आबादी 24 लाख तो किसी का 2 लाख। किसी प्रखंड की आबादी 17 लाख तो किसी की 33 हजार। किसी प्रखंड में 23 पंचायत तो किसी में 3 पंचायत। संगठन राज्य स्तर का है तो जिला इकाई के बदले संसदीय क्षेत्रा आधरित बनाना चाहिए, पफर विधनसभा क्षेत्रा की इकाई बनाए। विधनसभा में पड़ने वाले जिला परिषद क्षेत्रा, पंचायत के आधर पर पिफर नगर में नगर निकाय के आधर पर संगठन बनाएं और प्रत्याशी हेतु पांच-पांच लोगांे का विकल्प बनाए। प्रत्याशी के लिए वैसे लोग जो अपने राजनीतिक दल से बढ़कर या समांतर महत्व वैश्य संगठन को देता हो, खुल्लम-खुल्ला आर-पार की लड़ाई।
पटना और समस्तीपुर जिला में दो-दो संसदीय क्षेत्रा हैं तो मंुगेर संसदीय क्षेत्रा में तीन जिला का क्षेत्रा आता है- मंुगेर जिला का दो विधनसभा- मंुगेर, जमालपुर। लखीसराय जिला का दो विधनसभा- लखीसराय और सूर्यगढ़ा। पटना जिला का दो विधनसभा - मोकामा और बाढ़। मान लिया मंुगेर संसदीय क्षेत्रा से किसी वैश्य को प्रत्याशी बनाना है। वर्तमान में संगठन का स्वरूप जिला स्तरीय है- इस स्थिति में पटना, लखीसराय और मंुगेर के वैश्य कभी एक साथ इकट्ठा हुए? तो संसदीय प्रत्याशी कैसे दे सकेंगे?
वैश्य नामित संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अपने को राजनीतिक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से कम नहीं समझते हैं। वे कभी संगठन करने हेतु किसी जिला में दो-चार दिन समय नहीं देते हैं और पटना से पफरमान जारी करते हैं कि अमुक तिथि को पटना में अपने साथियों के साथ पधरें। ये अध्यक्षगण व्यक्तिगत स्तर से पर्व-त्योहार, किसी शुभ मौके पर आपस में बात नहीं करते हैं। यदि ये अध्यक्ष का प्रदेश पदाध्किारी जिला का दौरा करते हैं तो अपने साथी, सहयोगी के घर पर नहीं ठहरते इनके लिए 
सुविधयुक्त होटल का इंतजाम होना चाहिए। इन सब कमियों को सुधर दिया जाए तो बिहार के वैश्य की राजनीतिक क्षेत्रा में अपना बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं और बिहार की राजनीतिक क्षितिज पर चमक सकते हैं।

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