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ईमानदार और दूरदर्शी नेतृत्व के अभाव में वैश्य-बनिया समूह की जातियाँ

वैश्य क्रांति पत्रिका के सम्पादक मैं दीपक कुमार पोद्दार आप से मुखातिब हूँ. आज के चर्चा का विषय है ईमानदार और दूरदर्शी नेतृत्व के अभाव में वैश्य-बनिया समूह की जातियाँ.


    वैश्य-बनिया जाति समूह में नेताओं की भरमार है लेकिन एक भी प्रदेश में नेतृत्व कर्ता नहीं है.

    खुशी है कि वैश्य-बनिया जाति समूह में विधान सभा स्तर के नेताओं की कमी नहीं है बिहार विधानसभा में विभिन्न राजनीतिक दलों से २६ विधायक हैं, लेकिन दु:ख की बात यह है कि इसमें एक भी  वैश्य-बनिया जाति समूह के नेतृत्व करने की क्षमता नहीं रखते हैं.

    भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व वैश्य-बनिया जाति समूह के अनेकानेक नेताओं को नेतृत्व प्रदान करने के लायक बनने हेतु सुनहरा अवसर दिया, लेकिन इन्होंने संकेत को भूल से भी समझने का प्रयास नहीं किया है. ये अपने विधान सभा क्षेत्र से, परिवारवाद और छोटे स्वार्थ से निकलने में कभी दिलचस्पी ही नहीं ली. इनमें नेतृत्व करने की इच्छा शक्ति पैदा ही नहीं हुई है. झोला ढ़ोने की मानसिकता से बाहर निकल ही नहीं सके हैं.




    तार किशोर प्रसाद और रेणु देवी को एक साथ बिहार का उप मुख्यमंत्री पद से नवाजा, लेकिन दोनों ने कभी भी वैश्य-बनिया जाति समूह का सहारा नहीं बने. न ही कभी उनका भरोसा जीतने के लिए कोई रणनीति अपनायी. न कभी गंभीरता पूर्वक प्रयास ही किया. इनकी चिन्ता केवल अपने परिवार तक ही सीमित रही. ये लोग कभी वैश्य-बनिया जाति समूह पर ध्यान तक नहीं दिया. वैश्य-बनिया जाति समूह के सभाओं में मुख्य अतिथि बने. समाचारों के शीर्षक बने. लेकिन कभी भी वैश्य-बनिया जाति समूह को मजबूत करने की दिशा में किसी प्रकार का जतन नहीं किया.

    वैश्य-बनिया जाति समूह में वैश्य पोद्दार भी शामिल है. इसका नाम केन्द्र सरकार के ओबीसी सूची में शामिल नहीं है. इस सूची में नाम दर्ज कराने के लिए विधान सभा में कभी आवाज नहीं उठाई है. जबकि विभूतिपुर के कम्युनिस्ट व गैर वैश्य-बनिया  विधायक अजय कुमार ने विधान सभा में प्रश्नोत्तर काल में वैश्य पोद्दार के केन्द्रीय जाति सूची में नाम दर्ज करने की माँग उठायी.

    पान, स्वांसी ततवा को बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति में शामिल किया था. मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँचा. सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार सरकार के आदेश को रद्द कर दिया. जमुई की गैर वैश्य-बनिया विधायक श्रेयसी सिंह ने विधान सभा में पान ,स्वांसी, ततवा को पुन : अनुसूचित जाति में शामिल कराने हेतु बिहार सरकार से वैधानिक प्रक्रिया पूरी करने की माँग की.




    वैश्य-बनिया जाति समूह के २६ विधायक हैं , विधान परिषद में भी अनेक सदस्य हैं, लेकिन किसी ने भी किसी सदन में इन जातियों को सही हक दिलाने के लिए जुबान नहीं हिलायी.

    संसद के दोनों सदनों में भी बिहार वैश्य-बनिया जाति समूह से सदस्य हैं. फिर भी वैश्य-बनिया जाति समूह बेचारा है.

    प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष बेतिया के सांसद डॉ संजय जायसवाल और विधान पार्षद , पूर्व बिहार सरकार के राजस्व मंत्री डॉ दिलीप जायसवाल जो लगातार दूसरी बार प्रदान भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष मनोनित हुये हैं, वैश्य-बनिया जाति समूह का भरोसा नहीं जीते हैं. वैश्य-बनिया जाति समूह के संगठनों के मंचों पर केवल माला पहनने आते हैं. इन्हें भी होश नहीं है कि आला कमान के इशारों को समझे. पार्टी से प्रदेश का नेतृत्व कर्ता बने.


    ना समझने वाले सूची में और कई अनेक नाम हैं. पूर्व मंत्री राम नारायण मंडल और प्रमोद कुमार , वर्तमान में मोती लाल साह, संजय सरावगी और केदार गुप्ता भी ऐसे ही नेता में शामिल हैं.

    इन नेताओं को पता भी नहीं है कि वैश्य-बनिया जाति समूह में , वैश्य-बनिया समूह के कितने संगठन हैं और जातियों में किस -किस जाति का कहाँ-कहाँ संगठन है. ये संगठन किस हाल में है. अधिक से अधिक अपनी जाति संगठन को ही जानते हैं.

    ये नेता संबंध बनाने और बढ़ाने में कंजूस हैं. ये अपने संसदीय और विधान सभा के बाहर के वैश्य-बनिया जाति समूह के कार्यकर्ता का गॉड फादर बनने की योग्यता नहीं है. नेताओं के नेता बनने का सपना नहीं है. छोटे नेताओं का कोई अ़भिभावक नहीं बने हैं ,
बिहार के वैश्य-बनिया जाति समूह चाहता है कि उसका अपना मुख्य मंत्री हो , लेकिन अफसोस है कि किसका नाम आगे करे.

नेताओं के नेता की कमी वैश्य-बनिया जाति समूह को दु:ख देता है.



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