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लोकतांत्रिक आदर्श और मूल्यों का प्रतीक: रामजन्म भूमि

  भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक व ध्र्मनिरपेक्ष देश है। इस देश की आबादी का लगभग 80% आबादी हिंदुओं का है। हिंदुओं के आराध्य देवताओं में राम का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांध्ी ने राम राज्य की कल्पना की थी। भगवान श्रीराम के आदर्श की रक्षा लोकतांत्रिक मर्यादाओं की रक्षा और ध्र्मनिरपेक्षता की भावना को सम्मान करने के लिए हिंदुओं ने प्राथमिक न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक 69 वर्षों तक वैधनिक संघर्ष कर, राम जन्मभूमि को प्राप्त किया है। वैधनिक संघर्ष के दौरान ही हजारों-हजार लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। पदाध्किारियों ने मानवीय मूल्य की रक्षा में अपने पदों का बलिदान कर दिये। लोकतांत्रिक मूल्य व आदर्शों की रक्षा में वी. पी. सिंह की केंद्र की सरकार की बलि चढ़ गयी और उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह की सरकार को केंद्र के नरसिंह राव की सरकार ने बर्खास्त कर बलि दी। यह सभी हिंदू ही थे, लेकिन लोकतांत्रिक मर्यादाओं को बचाने के लिए इन्होंने धर्मिक भेदभाव को आगे नहीं आने दिया। कहने का आशय है कि हमारे देश के लिए लोकतंत्रा और ध्र्मनिरपेक्षता सर्वोपरि है।


राम जन्मभूमि में विराट व भव्य मंदिर निर्माण किया गया है और 22 जनवरी को राम की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। पौराणिक अयोध्या नगरी को सांस्कृतिक रूप से सवांरा गया है और पूरे नगर को आध्ुनिक सुविधओं से परिपूर्ण कर एक शानदार, विश्व स्तरीय नगर बसाया गया है। इसका श्रेय प्रधनमंत्राी नरेंद्र मोदी को जाता है। प्रधनमंत्राी नरेंद्र मोदी की वर्तमान योगदानों का मूल्यांकन करना तभी संभव है, जब इसके अतीत पर गंभीरता से नजर डालें। राष्ट्रपिता महात्मा गांध्ी का सपना ‘रामराज की स्थापना का लक्ष्य’ को साध्ने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संकल्पित रहा है। डाॅ. हेडगेवार कांग्रेसी थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। कांग्रेस सत्ता में बने रहने के लिए हिंदू हितों की उपेक्षा कर तुष्टिकरण की नीति अपनाती रही। इससे राष्ट्रप्रेमी कांग्रेसी हिंदू नेता क्षुब्ध् थे। कश्मीर के राजा हरी सिंह के सुपुत्रा डाॅ. कर्ण सिंह जो कांग्रेस के नेता रहे, कुटनीतिज्ञ, राजनीतिक और लेखक हैं। उन्होंने 1981 ई. में दिल्ली में विराट हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया था और इसकी सपफलता में महत्वपूर्ण भूमिका आरएसएस के प्रचारक अशोक सिंघल का था। आरएसएस ने अशोक सिंघल को विश्व हिंदू परिषद का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। 1984 में श्री सिंघल ने दिल्ली के विज्ञान भवन में हिंदू ध्र्म संसद का आयोजन किया। वे राम जन्म भूमि को मुक्त कराकर भव्य राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था और अपने कार्यों से हिंदू हृदय सम्राट बन गये थे।


16 जनवरी 1950 में बाबरी मस्जिद के बाहर राम और सीता की पूजा करने हेतु गोपाल सिंह विशारद ने नागरिक मुकदमा दायर किया था। 1986 में इनके मृत्यु के बाद इनके पुत्रा राजेंद्र सिंह ने पैरवी को आगे बढ़ाया। 31 जनवरी 1986 को वकील उमेश चंद्र ने जिला अदालत में याचिका दाखिल की। तत्कालीन डिस्ट्रिक जज ए. के. पांडे ने ताला खोलने की अनुमति दी। उसी समय शाहबानो मामलों को संतुलित करने के लिए प्रधनमंत्राी राजीव

गांध्ी ने ताला खोलने का आदेश दिया था। विदित हो कि राजीव गांध्ी को न्यायालय के आदेश की जानकारी नहीं थी। जिसकी पुष्टि पीएमओ सचिव वजाहत हबीबुल्लाह ने की। तत्कालीन गृह राज्य मंत्राी अरुण नेहरू ने हबीबुल्लाह के कथन का खंडन नहीं किया था। 25 सितंबर को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या यात्रा की शुरुआत की थी। उन्हें समस्तीपुर में लालू प्रसाद यादव ने गिरफ्रतार करवा लिया था। जिस कारण वी. पी. सिंह की सरकार गिर गई थी। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को कार सेवकों ने ढाह दिया था। मौके पर लाल कृष्ण आडवाणी, प्रो. डाॅ. मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार, राजमाता विजयाराजे जी सिंध्यिा आदि उपस्थित थे। देश में दंगा भड़की और हजारों-हजार लोगों की जाने गयी। महंत रामचंद्र दास, महंत अवैद्यनाथ, स्वामी वामदेव, भानु प्रताप शुक्ला, दतोपंत टंेगड़ी, गिरिलाल जैन आदि का योगदान सराहनीय रहा। कोठारी बंध्ुओं ने अयोध्या में अपनी बलि दी। सर्वोच्च न्यायालय में रामभद्राचार्य, पिता-पुत्रा की जोड़ी हरिशंकर जैन व विष्णु शंकर जैन शानदार बहसकर अविस्मरणीय जीत हासिल करने में अपनी महती भूमिका निभायी।


इस मंदिर के समीप एक संग्रहालय का निर्माण किया जाना चाहिए जहां इससे संबंध्ति सभी दस्तावेज सुरक्षित हो। साथ में इस आंदोलन में भाग लेने वालों का तैलिय चित्रा एवं जीवनी हो, क्योंकि यह विश्व के लोकतांत्रिक आदर्शों का अनुपम और अभूतपूर्व उदाहरण है।

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