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जातीय गणना वैश्य हित में

  बिहार में जातीय गणना करवाकर, उसका रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए मुख्यमंत्राी नीतीश कुमार, बिहार सरकार और बिहार विधनमंडल के प्रति आभार।

किसी भी काम के लिए योजना बनानी होती है, आर योजना का संख्यात्मक आकड़ाँ बहुत महत्वपूर्ण होता है। बिहार में जातिवाद एक सच्चाई है, अतएव जाति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति जानना आवश्यक है। सरकार अभी केवल जातिय गणना प्रस्तूत की है, अभी पूरे प्रमंडल का, जिला, प्रखंड पंचायत स्तरीय गणना आना बाकी है, साथ ही आर्थिक और सामाजिक स्थिति सर्वे रिर्पोट भी। पूरा-पूरा विश्लेषण सम्पूर्ण आंकड़ा आने के बाद संभव है। प्राप्त आंकड़ां के आलोक मंे यह स्पष्ट हो गया कि अनुसूचित जाति समूह आबादी में पहले स्थान पर है, इसके बाद वैश्य जाति समूह है। राजनीतिक रूप से वैश्यों का शोषण होता रहा है, इस आंकड़ा से स्पष्ट हो गया। बिहार में 2.5» आबादी वाली जाति बिहार में एक लोकसभा पाने का हक रखती है। वैश्य समाज की कुल आबादी 17.802» है तो इसका 7 सीट पर स्पष्ट दावेदारी बनती है, तेली-1, बनिया-1, कानू-1 सीट इसके साथ दो जातियों को मिलाने से 4 सीट मिलना ही चाहिए। वर्तमान में वैश्य समाज से मात्रा 3 सांसद हैं। तेली का एक जदयू से सुनिल कुुुमार पिंटू, सीतामढ़ी से। बनिया से- दो भाजपा से, बेतिया से डाॅ संजय जायसवाल और शिवहर से रमा देवी। अब की स्थिति में दोनों में से एक सीट कटना है और छः सीट के लिए वैश्य उम्मीदवार होना सुनिश्चित हो गया है। यदि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव अपने कथन पर डटे रहें तो।

भाजपा वैश्यों के साथ सदैव हकमारी करती रही है। भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक वैश्य समाज है, अतएव भाजपा जातिय जनगणना से विचलित हो गयी है, क्योंकि अब उसे वैश्य समाज का हकदारी का मौका नहीं मिलेगा, वैश्य समाज को लोकसभा में सात सीट देना ही होगा। यदि भाजपा ऐसा नहीं करती है तो भाजपा के हाथ से आधरीय वोट खिसक जाएंगी।

वैश्य समाज अपने राजनैतिक हक लेने के लिए वर्षो-वर्ष से प्रयासरत रहा है लेकिन कभी भी राजनीतिक दल इसे गंभीरता से नहीं लिया था, ना इसका वाजिब हक दिया था। वैश्य समाज के नेताओं को वैश्य बाहुल्य क्षेत्रा में अपनी स्थिति मजबूत करने में झोंक देना चाहिए। तेली, बनिया, कानू, नोनिया, पान-स्वासी, चैपाल, बढ़ई और कुम्हार। तेली की आबादी 36 लाख से अध्कि है तो कुम्हार की 18 लाख से अध्कि। इन जातियों से लोकसभा चुनाव में टिकट मिलना ही चाहिए। वैश्य भाजपा का बंध्ुआ मजदूर जैसा है, लेकिन अब नहीं। जातिय तनगणना ने आँख में उफंगुली डालकर हकीकत का खुलाशा कर दिया। अब वैश्य सांसद, विधयक और विधन पार्षद ने वैश्य को संगठित करने में क्या योगदान दिया, इसकी समीक्षा होगी।

  कानू, नोनिया, पान-स्वास, बढ़़़़ई और कुम्हार को लोकसभा प्रत्याशी बनने के लिए, उसे इध्रर -उध्रर  झांकने की मजबूरी है। यदि वस्तु स्थिति की गंभीरता वैश्य नहीं समझेगा तो इसकाी कीमत चुकानी पड़ेगी ही, और भविष्य में अपने नौनिहालों से अतीत को गाली सुनवाएगी। समय रहते जागरूक होना परम आवश्यक है।

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