वैश्य समाज के घटकीय नेता यानि विभिन्न जाति के तथाकथित नेता अपना होशो - हवाश खोकर "खुद तो डुबेंगे सनम तुम्हें भी ले डुबेंगे" कहावत को चरितार्थ करने के लिए कसम खाये हैं. वैश्य समाज के लोग जो विभिन्न जाति के हैं यदि जाति के नाम पर वैश्य लिखाते हैं और उप जाति में जिस जाति के हैं उसका नाम लिखाते हैं तो बिहार में सर्वाधिक आबादी वाला जाति के रूप में वैश्य उभर कर सामने आएगा इसका राजनीतिक लाभ वैश्य के सभी जाति को मिलेगा. यदि जाति के नाम को प्राथमिकता देंगे और उपजाति की चर्चा करेंगे तो निश्चय है ताँती, तेली, कानू व कुम्हार ईकाई अंक प्रतिशत में आएँगे और अन्य जाति दशमलव शून्य या दो शून्य में दिखेंगे. परिणाम होगा " धोबी का गदहा न घर के ना घाट का " के मुहावरे को चरितार्थ करेंगे.
फैसला आपके हाथ है, क्या करना उचित है?
वैश्य के राजनीतिक भविष्य के साथ ही आर्थिक और सामाजिक हैसियत की बात है. यदि आप तत्काल सावधानी नहीं बरते तो नौनिहाल को कीमत चुकानी होगी.
अंग्रेज के समय जाति आरक्षण में हरिजन में ताँती और तेली को शामिल किया गया था. ताँती समाज के तत्कालीन गणमान्य के जबरदस्त विरोध के कारण हरिजन में शामिल नहीं किया गया. अभी कुछ वर्ष पूर्व इसे अनुसूचित जाति में शामिल किया गया. तेली समाज के लोग लंदन में प्रिवी कौंसिल में मामला लाया था और तेली को हरिजन बनाने से रोका था. एक युग तक तेली जाति के लोग प्रखंड से राजधानी के सड़कों पर अनवरत संघर्ष किया तब इन्हे अति पिछड़ा का दर्जा मिला, इस संघर्ष में वैश्य के नाते मैं पोद्दार भी शामिल रहा था.
यदि आने वाले पीढ़ी को संघर्ष के रास्ते पर धकेलना है , वैश्य समाज को तबाह और बर्बाद ही करना है तो कौन रोक सकेगा. जो लोग मेरे विचार से सहमत है कृपाकर इस संदेश को जल्द से जल्द अधिक से अधिक लोगों को शेयर करे और वैश्य प्रहरी बनने के गर्व से गौरवान्वित हों.
-दीपक कुमार पोद्दार
स्मपादक, वैश्य क्रांति
मुंगेर (बिहार)
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