राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी का विचार है - योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखना अनिवार्य है कि समाज के अंतिम व्यक्ति को इस बात का लाभ मिले. अनेकानेक नेता इस विचार को दोहराते आ रहे हैं. भारत के राजनीति दुनिया का यह आदर्श वाक्य है. सभी दल के नेतागण इस वाक्य को दोहराते रहते हैं.
भारत में जातीय आधार पर प्रतिभाओं की हत्या होती आ रही है, एकलव्य और कर्ण उदाहरण हैं और यह हत्याएँ परम्परागत रूप से आज भी जारी है. समाज व राष्ट्र को कितना हानि हुई है और होती आ रही है इसका आकलन करना असंभव है.
यदि सरकारी तंत्र , राजनीतिक दल और सामाजिक व्यवस्था न्याय संगत होती , प्रतिभाओं को समुचित अवसर और सम्मान मिलता, साथ ही किसी क्षेत्र विशेष को प्रश्रय नहीं दिया जाता, जाति,कुल और वंश की प्रधानता नहीं होती तो जातीय जनगणना की आवश्यकता नहीं होती.
जातीय जनगणना को हिन्दू एकता में बाधा मानने वाले हिन्दुओं की एकता को कद्दू समझ रखा है, जो अंगुली दिखाते गल जाएँगी. अनेकानेक विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा सैकड़ों वर्षो से हिन्दू धर्म पर आक्रमण के बाबजूद भारत में हिन्दू बहुसंख्यक है, आखिर कैसे ? यह एकता जातीय जनगणना से खंडित होगी, वैसा विचार उन्ही का है जो सदियों से व वर्तमान में हिन्दू होकर हिन्दू का शोषण करते आ रहे हैं.
विविध जातियों को आरक्षण प्राप्त है. आरक्षण देने से लक्ष्य की पूर्ति हुई है ? क्या यह विचारणीय पक्ष नहीं है ? क्या इस पर समीक्षा नहीं होनी चाहिए ? सफल होने पर आरक्षण अधिकार से मुक्त नहीं किया जाना चाहिए. यदि आरक्षण के प्रयास का समुचित परिणाम नहीं निकला है तो इसका कारण नहीं ढ़ूढ़ा जाना चाहिए ? उस कमी को दूर नहीं किया जाना चाहिए. आरक्षण व्यवस्था के नीति पर प्रत्येक दसक में समीक्षा होना चाहिए.
आज की तारीख में किसी सरकार की यह साहस नहीं है कि आरक्षण समीक्षा हेतु एक स्वर निकाल सके, राजनीतिक दल इस पर खामोश है आखिर क्यों ?
डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा है " जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी " यह काम बिना जातीय और आर्थिक जनगणना से कैसे संभव है ?
जाति के नेतागण आरक्षण की माँग करते हैं, सरकार दवाब या दलीय हित में आरक्षण देती है, विरोधी पक्ष न्यायालय पहुँच जाती है, आखिर न्यायालय किस आधार पर फैसला देगी ? न्यायालय को न्याय करने हेतु जातीय और आर्थिक जनगणना आवश्यक है, समय की माँग है.
जो लोग जाति की सही - सही संख्या जानने मात्र से परेशानी की आशंका से विरोध कर रहे हैं निश्चय है कि वे अनुचित तरीकों से लाभांवित हैं. यह संकेत है कि न्याय के साथ खिलवाड़ हुआ है. किसी के साथ अन्याय न हो इसके लिए जातीय और आर्थिक जनगणना अनिवार्य है.
आगामी 1 जून को जातीय जनगणना पर सर्व दलीय बैठक में शामिल होने वाले माननीय से करबद्ध अपील है कि जातीय और आर्थिक जनगणना पर सहमति प्रदान कर न्याय के साथ विकास व सब का साथ सबका विकास की अवधारणा को मूर्त रूप देकर बिहार के प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करे.
जय बिहार
दीपक कुमार पोद्दार
संपादक
वैश्य क्रांति पत्रिका
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