Advertisement

वैश्य की राजनीति भविष्य तय करेगी नगर निकाय चुनाव की रणनीति



बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2020 विधानसभा के चुनाव में स्पष्ट कहा है कि वे 2025 का चुनाव नहीं लड़ेंगे, यह उनका मुख्यमंत्री के रूप में अंतिम कार्यकाल है। नीतीश कुमार ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी को चिन्हित नहीं किया है और न ही जदयू में उसका कोई  उत्तराधिकारी दूर-दूर तक नजर आता है।
   वैश्य समाज से तीन लोकसभा सदस्य डाॅ. संजय जायसवाल (भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष), रमा देवी (लोकसभा पीठासीन अध्यक्ष) और सुनील कुमार पिंटू हैं और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री राज्यसभा के सदस्य सुशील मोदी हैं। कुल चार सांसद सदस्य व तत्कालीन बिहार के उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी है। अर्थात् वैश्य समाज से मुख्यमंत्री के दौर में कुल छः सदस्य हैं। यदि ये सभी लोग आपस में मिलकर नगर-निकाय चुनाव में वैश्यों का कब्जा 60% सीट पर करा दें तो उक्त दावेदारी एक हकीकत अफसाना के रूप में सामने हो सकेगी जो आज की तारीख में हसीन सपना से ज्यादा नहीं कहा जा सकता है। बिहार में वैश्य के 26 विधायक हैं और 7 विधान परिषद् के सदस्य हैं। कुछ ऐसे नेता हैं, जो गत विधानसभा चुनाव में दूसरे नम्बर पर रहे हैं।

नगर निगम 19 हैं। भावी मुख्यमंत्री के भावी दावेदार कुल छः सदस्य तीन-चार नगर निगम में वैश्य मेयर, उपमेयर बनाने की जिम्मेदारी ले लें और यह क्षेत्र अपने लोकसभा तथा विधानसभा क्षेत्र से बाहर का होना चाहिए जो स्पष्ट संदेश दे कि इन क्षेत्रों से इनको कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं मिलने जा रहा है। ये केवल वैश्य समाज के हित के लिए काम करेंगे। साथ में यह ध्यान रखना है वैसे वैश्य को प्रत्याशी बनाने में अपनी भूमिका निभाएं जो वास्तव में इसका हकदार हों, शेष वैश्य सेे होनेवाले प्रत्याशी को मैदन से हट जाने के लिए मना ले, फिर सर्वसम्मत प्रत्याशी को जीताने में अपनी बुद्धि, विवेक और अन्यान्य शक्ति का उपयोग करें। इसी सूत्र के आधर पर विधायकों, विधानन पार्षदों और चुनाव में पराजित वैश्य नेताओं को 89 नगर परिषद और 155 नगर पंचायत की जिम्मेदारी सौंपी जाए। यदि इस प्रकार की रणनीति को वास्तविकता का जामा पहनाया जाए तो निश्चिय ही वैश्य का राजनीतिक शक्ति के रूप में उदय होगा।


      विधानसभा में समानुपातिक आधार पर वैश्य को 61 सदस्य होना चाहिए। ऐसा प्रयास होना चािहए कि विभिन्न दलें बड़ी संख्या में वैश्य को उम्मीदवार बनाए। इसका मुख्य आधार नगर निकाय चुनाव होगा। यदि 61 सदस्य वैश्य का विधानसभा पहुंच जाता है तो मुख्यमंत्री के दावेदार में कोई वैश्य बिहार का मुख्यमंत्री बन सकता है। जमीन सभी मिलकर बनाए, जिसके भाग्य में जो होगा उसे मिलेगा, ऐसी उदारतापूर्ण सोच से ही वैश्य का राजनीतिक भविष्य उज्जवल होगा।

       सभी वैश्य नेता, विधायक, विधान पार्षद और संसद सदस्य एक-दूसरे को परस्पर यथोचित मान-सम्मान दे, सहयोग करें और आपसी समन्वय से ऐसा वातावरण का निर्माण करे कि नगर निकाय में अधिकांश सीटों पर वैश्य का कब्जा हो। वैश्य को नगर में निवास करने वाली जाति के रूप में पहचान है। इसके लिए मीडिया में ढिंढ़ोरा पीटने की जरूरत नहीं है। सभी माननीय के पास सभी माननीय का मोबाइल नम्बर, वाट्सएप नम्बर, ई-मेल है। आपस में बातचीत कर रणनीति तैयार करें। परस्पर सहमति से एक-एक क्षेत्र की जिम्मेदारी ले, जिन्हें जिस क्षेत्र की जिम्मेदारी मिली है या ली है वे उस क्षेत्रा पर पैनी नजर रखे वहां के प्रबुद्ध व आम वैश्यों से फीडबैक ले और जो सर्वश्रेष्ठ वैश्य उम्मीदवार हो उनको सर्वसम्मति से उम्मीदवार बनाए और अन्य उम्मीदवार को प्रत्याशी बनने से रोके और उन्हें वार्ड पार्षद पद के लिए चुनाव लड़कर अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने को समझायें। बिहार की राजनीति में वैश्यों का उज्जवल भविष्य के लिए सुझाव प्रस्तुत है। वैश्य के नेतागण इस सुझाव पर कितना गंभीर होंगे, यह आने वाला कल बताएगा। 

       सविनय निवदेन आग्रह के साथ सुझाव इन नेताओं को समर्पित हैं। वैश्य के प्रबुद्धजन जो भी नगर निकाय चुनाव में वैश्यों की सफलता के लिए अपना विचार देना चाहते हैं, उन्हें सादर आमंत्रित किया जाता है। 

Post a Comment

0 Comments


जनोपयोगी महत्वपूर्ण पुस्तक