सूची-1, 2020 में सम्पन्न तारापुर विधनसभा का चुनाव परिणाम है। सूची-2, 2021 में सम्पन्न तारापुर विधनसभा का उपचुनाव परिणाम की सूची है।
उपरोक्त सूची से स्पष्ट है कि पिछले बार की तुलना में 5146 मत कम पड़ा। पिछले बार की तुलना में इस बार नोटा में कुल 1032 मत अधिक डाला गया अर्थात् 2566 मत।
इसका स्पष्ट संदेश है कि लोगों के मन में सरकार के प्रति और राजनीति दल के प्रति नाराजगी बढ़ी है।
जदयू- 64468 राजद- 57243 लोजपा (रामविलास)- 11203, राजेश मिश्रा- 10,421 नोटा- 1534 कुल- 14486 अन्यान्य प्रत्याशी को 29678 मत मिले।
राजद ने तारापुर उपचुनाव में वैश्य अरूण साह को उम्मीदवार बनाकर जबरदस्त दांव चला, पफलतः सत्तारूढ़ दल के माथे पर बल पड़ा और उसकी बैचेनी बढ़ी। एनडीए ने सत्ता शक्ति लगा दी। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने खुद कमान संभाली। उन्होंने सबसे पहले वैश्य उम्मीदवार के कारा डायमेज कंट्रोल के लिए भाजपा के वैश्य नेता, उपमुख्यमंत्राी, पूर्व उपमुख्यमंत्राी, कैबिनेट मंत्राी, सांसद और विधयकों को लगाया और इसका लाभ मिला। वैश्य का पूरा मत अरूण साह को नहीं मिला। उसने लगभग 30» मत को एनडीए में बनाये रखने में सपफलता प्राप्त की।
ललन सिंह ने रालोसपा को मिले 5110 मत को जदयू के लिए आसानी से समेटा, कुशवाहा और अन्य के बीच के संघ्र्ष का पूरा लाभ लिया। लोजपा और राजेश मिश्रा के वोट में जबरदस्त सेंध्मारी की, लोजपा के 50़ से अध्कि मत को अपनी ओर खींचाऋ 5833 मत झटके। और राजेश मिश्रा के पिछले बार मिले मत से 6851 मत की सेंध्मारी की। इस तरह उन्होंने 70 हजार से उपर का कांटा पार किया। पिछले चुनाव में अन्यान्य प्रत्याशी ने 29678 मत पाये थे। कहा जा सकता है कि इसमें उसने मात्रा एक चैथाई मतों पर कब्जा जमाने में सपफलता मिली।
जिनके पास सत्ता होता वे इतना मत आसानी से जुगाड़ कर लेते हैं। वैश्य बैंक में राजद ने सेंध्मारी में कापफी सपफलता पायी। चुनाव परिणाम का गिनती का राउंड ललन सिंह को भी हिलाकर रख दिया था, नीतीश कुमार भी चिंतित थे। क्योंकि जदयू के अपनी जुगाड़ टूटता-बिखड़ता नजर आ रहा था। सांस थामे चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे थे। अंत भला तो सब भला। दिवाली अच्छी से मनेंगे, पटाखें पफोड़ने में सत्ता पक्ष को मजा आएगा।
पिछले सम्पन्न चुनाव में मेवालाल चौधरी को 64468 मत मिले, जिसमें वैश्य का वोट भी शामिल था। इस बार अरूण साह को 75145 मत मिला यानि कि 10,946 मत अधिक। इससे साफ-साफ दिखता है कि वैश्यों ने अरूण साह के पक्ष में खुलकर मतदान किया, लेकिन कुछ वैश्य सत्तारूढ़ दल से मोह नहीं छोड़ सकें, जिसका परिणाम अरूण साह के हार के रूप में है। उन्हें अब काफी मलाल आएगा, खुद अपनी निगाह में प्रश्न बन गये।
वैश्यों के आम लोग ने राजनीतिक दलों को अपना मंशा स्पष्ट करते हुए संदेश दे दिया। वैश्य के आमलोग चुनाव जीत गये, इसमें किंतु-परंतु नहीं है, लेकिन वैश्य के नेता चुनाव हार गये।
वैश्य ने चेतावनी दे दिया कि उसे किसी राजनीतिक दल का बंधुुुुआ मजदूर समझने का भूल न किया जाए। राजनीतिक दल से चुनाव वैश्य जीत गया, लेकिन सत्ता से हार गया।
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