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वैश्य और सत्ता में भागीदारी ( क्रमशः ) - 1



           अभी कोरोना काल चल रहा है | इसमें आदमी को आदमी से दूर रहना है , इसके बावजूद बिहार में निश्चित समय में चुनाव होना तय है | वैश्य समाज राजनातिक रूप से उपेक्षित समाज है | वैश्य छोड़कर सभी जातियां समानुपात से अधिक संख्या में लोकसभा, विधानसभा में अधिक स्थान लेती है और वैश्य की हकमारी होती है | डॉ. लोहिया ने कहा था “जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी“ | वैश्य समाज को कोई समानुपातिक संख्या के आधार पर विधानसभा में प्रत्याशी नहीं बनाता है | अतएव वैश्य को अपने हक के लिए मजबूती के साथ संघर्ष करना होगा, अपनी शक्ति को प्रदर्शित करना होगा |
वैश्य नामित संगठन उग्र विरोध का रास्ता नहीं अपनाता है | उसने किसी मुद्दे पर जिला या प्रदेश को बंद नहीं कराया है | प्रखंड से राजधानी मुख्यालय तक धरना-प्रदर्शन करके अपने शक्ति को प्रदर्शित नहीं किया है | इस कारण यह राजनैतिक रूप से कमजोर मानी जाती है |


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